Mirabai ka Jivan Parichay in hindi | मीरा बाई जीवन परिचय | Mirabai jivan Parichay in Hindi | मीरा बाई का जीवन परिचय | Mirabai ka Jivan Parichay in hindi | Mirabai biography in Hindi |
मीराबाई का जीवन परिचय
नाम | मीरा बाई |
जन्म | 1498 |
स्थान | राजस्थान के जोधपुर के मेवाड़ के पास चौकड़ी नामक कुड़की ग्राम में |
पिता का नाम | रतन सिंह |
माता का नाम | वीर कुमारी |
पति का नाम | महाराणा कुमार भोजराज |
रचनाएं | गीत गोविंद राग बिहाग मीराबाई की मल्हार राज गोविंद |
भाषा | राजस्थानी |
मृत्यु | 1557 में |
मृत्यु स्थान | द्वारका |
Mirabai ka Jivan Parichay in hindi
मीराबाई का जीवन परिचय –
मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा की कवित्री थी। मीराबाई ने अपना जीवन को कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपना सारा जीवन सिर्फ कृष्ण भक्ति में ही बिताया और कृष्ण को अपने पति के रूप में मानती थी। मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा की प्रमुख कवित्री थी उन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण भक्ति में लगा दिया अपना सारा जीवन कृष्ण की भक्ति सत्संग कृष्ण भजन तथा उन्होंने कृष्ण को अपना पति मान का सारा जीवन व्यतीत किया।
इनका जन्म 1498 में हुआ था राजस्थान के जोधपुर के मेवाड़ के पास चौकड़ी नामक कुड़की ग्राम में हुआ था। इनकी माता का नाम वीर कुमारी तथा पिता का नाम रतन सिंह था इन्हें बचपन से ही कविताओं का शौक था तथा बचपन में ही इन्होंने कृष्ण को आराध्य मानकर उनकी भक्ति भजन सत्संग कीर्तन करना आरंभ कर दिया था।
1516 में इनका विवाह महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ लेकिन कुछ समय बाद महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ। मीराबाई ने भोजराज के साथ तो विवाह किया लेकिन उन्होंने अपने पति को के रूप में कृष्ण को ही स्वीकारा था और वह कृष्ण को ही अपना पति मानती थी उसके कुछ समय बाद भोजराज उनके पति भोजराज की मृत्यु होने के बाद हो गई थी लेकिन मीराबाई ने उनके पति की मृत्यु के बाद भी अपने आप को विधवा के रूप में नहीं स्वीकारा।
मीराबाई का जीवन परिचय हिंदी में
क्योंकि वह मानती थी कि मेरे पति तो सिर्फ श्री कृष्ण ही है और मीरा बाई मंदिर सत्संग मैं जाकर भजन कीर्तन करना, कृष्ण के गीत गाना, कृष्ण के गुणगान करती रहती थी। इसी बात से नाराज होकर राणा विक्रमादित्य ने मीराबाई को मारने का प्रयास किय मारने का प्रयास किया था लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो सके और इसके बाद मेरा भाई वहां से वृंदावन चली गई।
उन्होंने वहां वृंदावन में कृष्ण की भक्ति सत्संग भजन कीर्तन आदि में व्यतीत किया। उसके बाद वह द्वारका चली गई क्योंकि उनका मानना था कि पत्नी का जीवन उसके ससुराल में ही पूर्ण होता है इसलिए उन्होंन जीवन उसके ससुराल में ही पूर्ण होता है इसलिए उन्होंने अपना अंतिम समय द्वारका में ही व्यतीत किया और 1557 में द्वारका में ही मीराबाई की मृत्यु हो गई और ऐसा माना जाता है कि वह मृत्यु के बाद एक मूर्ति में समा गई थी।
Mirabai biography in Hindi
मीराबाई की रचनाएं, भाव पक्ष, कला पक्ष और साहित्य में स्थान –
मीराबाई की रचनाएं
- गीत गोविंद
- राग बिहार
- गीत गोविंद
- राग बिहाग
- मीरा की मल्हार
- दास गोविंद
भाव पक्ष –
मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा की कवित्री थी यह कृष्ण को आराध्य मानकर इन्होंने अपना सारा जीवन व्यतीत किया इसके साथ ही उन्होंने नारी को सम्मान दिलाने समाज की कुरीतियों को खत्म करने आदि के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयास किया है। मीराबाई समाज के दाने लाल लज्जा इत्यादि को भूलकर ना सुनकर केवल अपनी मन की बात सुनी और कृष्ण भक्ति में अपना सारा जीवन को लगा दिया इस प्रकार मीराबाई ने अपनी रचनाओं कविताओं में भी कृष्ण भक्ति तथा नारी के सम्मान समाज कल्याण आदि के लिए के बारे में लिखकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है। इसके अलावा मीराबाई ने अपने भावों को व्यक्त किया है।
मीरा बाई का जीवन परिचय
कला पक्ष –
मीराबाई की मूल भाषा राजस्थानी थी इसके अलावा उन्होंने अपनी कविता और रचनाओं में ब्रजभाषा, गुजराती भाषा, अवधी भाषा एवं खड़ी बोली का भी उपयोग बहुत ही अच्छी तरीके से किया है इन्होंने अपनी रचनाएं गीतों के रूप में रचना की है इनकी रचनाओं में सरलता और स्पष्टता साफ झलकती है क्योंकि इन्होंने अपनी रचना में केवल अपने भाव व्यक्त किए हैं इसके अलावा इनकी रचनाओं में अलंकार भावात्मक शैली वर्णनात्मक शैली एवं संघात्मक शैली का भी भरपूर समावेश मिलता है जो इनकी रचनाओं को एक विशेष बनाती है।
साहित्य में स्थान –
मीराबाई कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त थी इसलिए इन्हें साहित्य में कृष्ण भक्ति शाखा की कवित्री में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इनसे बड़ी कृष्ण भक्त हिंदी साहित्य में कोई नहीं हो सकती जिन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण भक्ति में लगाकर तथा कृष्ण को अपने आराध्य और पति के रूप में मानकर व्यतीत किया इसलिए इन्हें हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट पहचान मिलती है।