तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas ka Jivan Parichay in Hindi | तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं | Tulsidas ka jeevan parichay in Hindi Class 9th 10th 11th 12th | कक्षा दसवीं तुलसीदास जीवन परिचय |
गोस्वामी तुलसीदास जीवन परिचय
नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
जन्म | 1589 विक्रम संवत/1532 ईसवी |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के राजापुर बांद्रा में |
पिता का नाम | आत्माराम दुबे |
माता का नाम | तुलसी देवी |
गुरु | आचार्य रामानंद |
रचनाएं | कवितावली
गीतावली विनय पत्रिका दोहावली रामचरितमानस |
पत्नी | रत्नावली |
मृत्यु | 1680 विक्रम संवत/ 1623 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश के काशी में |
तुलसीदास का जीवन परिचय pdf
गोस्वामी तुलसीदास जीवन परिचय
जीवन परिचय :-
तुलसीदास जी राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे तथा इन्होंने राम भक्ति के अलावा समाज सुधारक कार्य के लिबी महत्वपूर्ण योगदान दिया है इनके द्वारा सबसे प्रमुख ग्रंथ श्री रामचरितमानस की रचना की गई है जो इन्हें एक महान कवि बनाती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म1589 विक्रम संवत में बांदा जिला के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था लेकिन इनके जन्म और जन्म स्थान का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है तथा इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा इनकी माता का नाम हुलसी देवी था उनके बचपन के समय हि इनकी माता का निधन हो गया था इसके बाद उनके पिता ने भी तुलसीदास को एक दासी को सौंप दिया लेकिन कुछ समय बाद उसका सी की भी मृत्यु हो गई इस प्रकार वे अनाथ हो गए तथा उन्होंने अपना जीवन भिक्षा मांग कर व्यतीत किया इस प्रकार तुलसीदास जी का बचपन बहुत ही कष्ट भरा रहा उन्होंने अनेक समस्याओं का सामना किया।
उसके बाद इनका विवाह रत्नावली से हुआ वह अपनी पत्नी से बहुत अधिक प्रेम करते थे एक बार जब उनकी पत्नी मायके चली गई तो वह पत्नी से मिलने के लिए मायके चले गए वह भी बहुत तेज आंधी तूफान बारिश में उफनती नदी को पार करके वह अपनी पत्नी से मिलने पहुंच गए इसी प्रेम को देखकर पत्नी ने उनसे बात कही कि जितना प्रेम तुम मुझसे करते हैं उससे आधा भी अगर तुमने भगवान की भक्ति में लगा दिया तो तुम से बड़ा विद्वान कोई नहीं होगा यही बात गोस्वामी तुलसीदास जी के हृदय को छू गई और उन्होंने यह निर्णय लिया कि अब वे भगवान की भक्ति में मगन हो जाएंगे।
Tulsidas ka jeevan parichay in Hindi Class 9th 10th 11th 12th
और तभी वह वहां से चले गए और काशी आकर उन्होंने भक्ति में अपने जीवन को लगा दिया और सन्यासी हो गए और उन्होंने राम भक्ति में लीन होकर रामचरितमानस विनय पत्रिका कवितावली गीतावली दोहावली जैसे प्रमुख ग्रंथ की रचना की। काशी में ही उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन व्यतीत किया और 1680 विक्रम संवत या 1623 ईसवी में से परलोक को सिधार गए उनकी मृत्यु हो गई मृत्यु के समय उनके आखिरी शब्द राम-राम थे।
गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएं :-
रामचरितमानस
विनय पत्रिका
गीतावली
पार्वती मंगल
दोहावली
हनुमान बाहुक
भाव पक्ष :-
गोस्वामी तुलसीदास जी राम भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे तुलसीदास जी राम भक्तों के अलावा शिव भक्त दुर्गा भक्त गणेश भक्तों एवं सभी देवी देवताओं की भक्ति तथा आस्था रखते थे तथा इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति और धार्मिक विचारधारा भी पूर्ण रूप से दिखाई देती है तुलसीदास जी भगवान श्रीराम को परम ब्रह्मा के रूप में मानते थे इन्हें इनका मानना था कि ज्ञान और भक्ति के द्वारा ही भवसागर को पार किया जा सकता है इसके अलावा तुलसीदास ने लोक हितकारी मानव कल्याण एवं समाज कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयास किए तथा इनकी रचना और ग्रंथ में श्रंगार शांत और वीर रस जैसे का समन्वय प्रचुर रूप से मिलता है।
कक्षा दसवीं तुलसीदास जीवन परिचय
कला पक्ष :-
गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रमुख भाषा ब्रजभाषा थी इसके अलावा उन्होंने अवधि भाषा को भी अपनाया तथा संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग इनकी रचनाओं में प्रचुर रूप मैं मिलता है इनके द्वारा रामचरितमानस को अवधी भाषा में गीतावली और विनय पत्रिका जैसे महान ग्रंथ को ब्रज भाषा में लिखा गया है इनकी भाषा सरल आसान सुंदर एवं चमत्कार उत्पन्न करने वाली है तथा इन्होंने अपने युग की सभी शैलियों का प्रयोग भली-भांति किया है इसके अलावा उन्होंने अपनी रचनाएं अवधि एवं ब्रजभाषा दोनों में समान रूप से लिखी है तथा इनकी रचनाओं में फारसी भोजपुरी अरबी बुंदेलखंडी जैसी भावनाओं का भी वर्णन मिलता है।
इन्होंने मुहावरे लोकोक्तियां कि दोहा चौपाई पद शैली सवैया शैली कभी उपयोग किया है तथा इनकी रचनाओं में उपमा अलंकार रूपक अलंकार उत्प्रेक्षा अलंकार का भी वर्णन मिलता है।
साहित्य में स्थान :-
गोस्वामी जी का साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है इन्हें राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है इन्होंने राम भक्ति में अपना जीवन व्यतीत किया तथा राम भक्ति से प्रेरित होकर इन्होंने रामचरितमानस विनय पत्रिका गीतावली जैसे प्रमुख ग्रंथ की रचना की इसलिए इनका साहित्य में स्थान सर्वोपरि है।